Wednesday 30 November 2011

Rashtraniti


मित्रो एक लम्बे अरसे बाद ,कुछ लिख रहा हूँ ,इस बीच घटा भी बहुत कुछ है |थोड़ी उहा-पोह भी है ,कि,'नेट' पर चल रहे संवाद के ओर -छोर मिल नहीं पा रहे ,तो सोचा अपनी बात ही कह डालूं |अच्छी चर्चा चलेगी ,तो बढ़िया नहीं चलेगी ,तो भी बढ़िया मेरी 'भड़ास'निकल जाएगी |
अभी ,मैं भारत एक राष्ट्र है और जहाँ , राज करने के लिए प्रजातान्त्रिक प्रणाली लागू है ,विषय पर अपने विचार रख रहा हूँ |
व्यवाहरिक रूप में जहाँ पचास 'गीदड़' और ,एक लोमड़ी मिलकर ,उनंचास 'शेरो' 'पर राज कर सकते हैं | दर्द ये है कि, एक राष्ट्र के निर्माण में लगी आहुतियों को
 ' आज 'के लोग इतनी जल्दी भुला क्यों देतें है ?दुर्भाग्य ये भी है कि सही इतिहास लिखने में इनकी 'नानी क्यों मरती है '? क्या केवल इसलिए कि, जिनको ये 'भद्र' लोग बढ़ा-चढ़ा के पेश करते हैं ,'वो 'निहायत ही 'बौने' साबित होंगे उनके सामने जिनको ये भुला देना चाहते है |मैं 'भावनाओं में जीता हूँ ',मेहनत की रोटी खायी और खिलाई है बुद्धि का उपयोग रक्षा के लिए करता हूँ ,शोषण के लिए कदापि नहीं |कुलाधिपति,कुलपतियों,को आयना दिखाया है ,जरुरत पड़ने पर उत्पाती समूहों पर सफल नियंत्रण किया है अपने 'आत्मबल' के साथ |इसके पीछे ,राणा प्रताप ,शिवाजी,भगत सिंह ,चन्द्र शेखर आजाद ,राम प्रसाद 'बिस्मिल',सुभाष चन्द्र बोस    की तस्वीरें बचपन से घर में देखी हैं ,घर में साधू-संतों की सेवा , पूजा पाठ का माहौल भी मिला , साहित्यिक चर्चाएँ भी मिली ,इन सबने जो संस्कार निर्मित किये वो मेरी 'पूंजी 'बन गए ,संबल बन गए | 
इसी आधार पर क़ुरबानी करने वाले मेरे 'नायक'रहे ,और अभी भी हर क़ुरबानी 
के लिए तैयार व्यक्ति मेरा नायक है ,सुविधा-भोगी या सुविधा पर बिका व्यक्ति 
मेरी drasti (नजर )में एक साधारण व्यक्ति है |
१५ अगस्त १९४७, को मिले 'खंडित' भारत को सत्ता हस्तांतरण में कुर्सी हस्तगत 
करने वाले साधारण व्यक्ति तो अंग्रेजों के 'चाटुकार'ही थे ,और अंग्रेजों ने ही अपनी सुविधा के लिए ,उनके यहाँ से चले जाने के बाद भी उनके ही हितों की  रक्षा कर सकें वह तमाम भद्र लोग |तरह-तरह के टोटकों ,तदर्थ -वाद से देश की 
शिक्षा ,स्वास्थ्य,शासन चलाने लगे और केवल और केवल कुर्सी पर काबिज 
होने की योजनाओं के लिए ' राजनीति 'में डूबे रहे और 'राष्ट्रनीति' बनाने से 
कतराते रहे |न अतीत से सीखा ,न जापान से ,न इसराइल से |बात आधी-अधूरी 
सी लग सकती है ,पर समझदारों के लिए पूरी है |
जरुरत राष्ट्रनीति की है ,जहाँ नक्सलप्रेमी ,कश्मीर पर जनमत संग्रह ,
अख़बारों की सुर्ख़ियों में रहने का सपना पालनेवाले या 'मेगसेसे 'पाने 
की होड़ में लगे छद्म बुद्धिजीवी  को उसकी सही जगह पर बैठाया जा सके 
और सीमाओं की रक्षा में लगे लोगो की क़ुरबानी का मजाक बनाने वालों 
को सबक सिखाया जा सके |
छिछोरी 'राजनीति' की नहीं   

Tuesday 29 November 2011

Development of education




Any education at any level if involves the ' Thought Process',can best be delivered in the respective mother tounge only .
An attempt ,in this direction in early sixties in Bombay municipal schools 
under the direction of scientists from TIFR is worth mentioning .Text 
books for post primary i.e.6th,7th&8th classes science were developed
in Marathi  ,at least the basic process at that level was given full liberty to grow and it yielded encouraging results .Taking a step ahead ,later a groupagain led by one from TIFR together with a small group drawn from IITK,DU & few locals tried in the state of Madhya-pradesh at BANKHEDI avillage in Hoshangabad district under the banner of Kishore-Bharti ,by publishing a book बाल-वैज्ञानिक in Hindi for the same level .The results were encouraging .
This type of activity ,in the year 1974 was started
in the state of U.P.in Banda districit at village Atarra under the banner
of Science Education Centre adding few more dimensions beside science teaching in Hindi . 
This group took inspiration from the attainments of scientists who through their 'own' languages ,in particular ,Russians & Japanis. .Interacting with the scientists with those countries ,found that they 
were strong at science ,however ,very poor at English ,the language
championed by a certain 'class'of people.
Beside ,this a sense of pride if to be realised then ,own language,
own dress ,own religion as a NATION ,becomes a natural need .
I am highly impressed by the people of Maharashtra and people of
South,for preserving and propagating the native food,native dress and
native culture .I am neither against any language nor any person ,but 
thought to share my first -hand-experience with the learned group ,
hence a very humble submission .
Mahipal 
,Oct.24,2011,Kasmada House,Gali no.2,Ajad Nagar,Morar,Gwalior,
 M.P. 474006

एक रचना


धुंआ उट्ठा है अगर ,
                         आग तो कहीं होगी ही ,
हवा है ,पानी है अगर,
                         जिन्दगी तो होगी ही ,
मोहब्बत है अगर ,
                       दीवानगी तो होगी ही ,
शेर है ,शराब है अगर ,
                       जवानी तो होगी ही ,
मैं हूँ और तू है अगर ,
                       कहानी तो कोई होगी ही |
महिपाल ,१३ जून ,२००३ ,ग्वालियर 
(प्रेषित २२ अक्टोबर,२०११ ,ग्वालियर ) 

चिरंतन-सत्य


मेरे दोस्त ,
ईमानदार आदमी बहुत खतरनाक होता है ,
वह अपने कपाट तो खोल कर ,
रखता ही है ,
औरों के कपाट भी  ,
बिना बताएं  ,बिना खट खटाए ,
धक्का मार के खोल देता है ,
ईमानदार आदमी बहुत खतरनाक होता है ,
मेरे दोस्त ,
ईमानदार आदमी ------

ईमानदार आदमी ---
वह मुखौटा तो कोई ओढ़ता नहीं ,
औरों के मुखौटे को भी  तलवार की ,
आड़ी मार से तोड़  देता है ,
विपरीत रास्ते मोड़ देता है,
मेरे दोस्त ,ईमानदार आदमी ----
मेरे दोस्त 

ईमानदार आदमी ,
वह खुद तो धधकता ही रहता है ,
बर्फ के पुतलों में भी ,
कुछ हरकत हो ,इस कोशिश के साथ ,
दियासलाई रगड़ देता है
ईमानदार आदमी बहुत--
मेरे दोस्त ,

ईमानदार आदमी ,
चूँकि वह चैन की नींद सोता है ,
उसका खजाना उसके पास होता है ,
भरी महफ़िल में वह औरों पर ,
सवार होता है ,अपनी जमीर  अपने पास रख,
औरों की गिरफ्त से दूर होता है ,
ईमानदार आदमी --
मेरे दोस्त ,ईमानदार आदमी बहुत --

ईमानदार आदमी ,
औरों के राज तो उसके ,पास तो होते हैं ,
पर उसका कोई राजदार ,
नहीं होता है ,
और चलते हैं ,छुप-छुप कर ,
डर - डर कर ,वह सरे-आम ,खूंखार होता है ,
ईमानदार आदमी बहुत ---
मेरे दोस्त , ईमानदार आदमी बहुत ----

ईमानदार आदमी ,
वह औरों के हांके हकता नहीं ,
छद्म ताकत के सामने झुकता नहीं ,
मोड़ने से मुड़ता नहीं ,
तोड़ने से तुड़ता नहीं ,
जोड़ने से जुड़ता नहीं ,
तोड़ने ,मोड़ने ,जोड़ने की ,
'साजिश ' में लीन लोगों को,
ऐसा आदमीं ,नागवार होता है ,
इसीलिए ईमानदार आदमीं 
बहुत खतरनाक होता है  ,
मेरे दोस्त ,
ईमानदार आदमी बहुत -----

ईमानदार आदमी ,
'बे-ईमान'तो जीते जी 'लाश'होते हैं ,
जबकि 'इसका 'मरने के बाद ,
'भूत' जिन्दा होता है ,
इसीलिए आज महा-भारत का 
पर्याय ,'गुजरात 'होता है ,
ईमानदार आदमी ,
बहुत खतरनाक होता है ,मेरे दोस्त ,
ईमानदार आदमी |

महिपाल ,(रचना-काल ,जुलाई १९७४ ,अब तक डायरी में कैद )
मुक्ति-दिवस ३१ अक्तूबर ,२०११ ,रात्रि ११.३९        
 

व्यापार


एक आये ,
उन्होंने बनाया था कोई तेल ,
पता नहीं उन्होंने बनाया था ,
या कहीं पाया था ,
पर वे बेच रहे थे ,
बार -बार कहते थे ,
कि शुद्ध ब्राम्ही आंवला तेल है ,
बड़े गुण है ,
सिर में ठंडक रखता है ,
लगाने से चित्त प्रसन्न रहता है ,
और स्वाभाविक ही ,
काम करने का माद्दा बढ़ता है ,
अधिक काम करने से ,
आर्थिक स्थिति सुधरती है |

फिर ,कहीं से ,
एक और आये ,
वह भी लिए थे तेल ,
ब्राम्ही आंवले का ,
दोनों के तेल एक से थे ,
उनमें ,अधिक तेल बेचने की ,
प्रतिस्पर्धा जन गयी ,
देखते ही देखते ,
बात ही बात में ,
दोनों में ठन गयी ,

अब वे आंवले के गुणों को छोड़ ,
उसके ' मेक ' पर उतर आये थे,
और 'मेक ' के प्रचार में ,
जाने क्या -क्या गुल खिलाये थे ,
किसी के केश लहराहे थे ,
तो किसी के कपडे उतरवाए थे ,

' मेक ' की बात भीड़ ,
 की समझ में नहीं आई ,
आंवले को गुणों को समझने वालों ,
में से किसी एक ने ,
अपना आंवला ले ,
अपना ही तेल बनाया ,
तो, दोनों के मुंह ,लटक गए ,
वे कुढ़ गए ,चिढ गए |

अब तो दोनों  यही कह रहे थे,
कि मेरा तेल ,तेल है ,
उसके में मिलावट ,
दूसरा और नीचे गिरा या ऊपर चढ़ा ,
सिवा मेरे कोई नहीं बना सकता ,
बिना मेरी ' प्रोसेसिंग ' के नहीं बनता तेल,

भीढ़ में से किसी ने कहा ,
भाई आंवले में गुण बहुत है ,
फिर ' मेक ' और ' प्रोसेसिंग से क्या वास्ता ,
वे नाराज ,हो गए ,
क्योंकि वे ,
ख़ाली तेल ही नहीं बेच रहे थे ,
वरन ,झोले में छिपाए थे ,
कुछ हथगोले और पिस्तोल ,
ऐसा ही एक तेल बेचने वाला ,
पहिले ,भी आया था ,
सोलहवीं सदीं में ,
जहाँगीर के दरबार में ,
जिसकी त्रासदी भुगती है ,
पूरे चार सो बरस ,
हम ,हमारे बेटे ,
संभवतः बेटों के बेटे ,
अभी और भुगतेंगे |

फिर शायद ,उभर पायें ,उबर पायें ,
इन मानसिक व्याधाओं से ,
या कि प्राचीन सभ्यता से ,
गुरु और गुरुतर ,
भार सोंपे जा रहे हैं ,
जिंदगी के ये हसीं लम्हे , 
हम उनमें जी भी नहीं सकते ,
अपना कह कर भोग भी नहीं पाते |

सारी दुनियां,
और उनके साथ मिलकर ,
कुछ ,हमारे अपने दुभाषिये ,
हमें ' सभ्य ' बनाना चाहते है ,
छीन कर,
हमारी ' रोटी ',
और  ' लंगोटी '  ,
हमें  ' बटर ' ,और ,
' टेरीन 'से लड़ना चाहते हैं |

हम सुन रहे हैं ,
सुन ही नहीं ,वरन ,
भुगत रहे हैं ,
ये ,प्रचार -प्रसार ,
देख रहे हैं ,उसके प्रकार ,
और चलता हुआ ,
यह सारा ----------व्यापार |
हमें जीने की कला ,
न सिखाओ ,
चूँकि ,हमारा ,
जीने का अलग ही ---- आधार |
-महिपाल    
( यह रचना अमेरिकी प्रभाव के अनावश्यक दबाब को चुनोती 
देने वाला  वातावरण बनाने का एक छोटा सा प्रयास था -रचना काल 1972,स्थान ,210-campus , I.I.T.Kanpur -16 
        

Friday 23 September 2011

परशुराम तुम ....?


 परशुराम , तुम क्रोधित क्यों हो ? ,
 क्यों तो ' ये 'गुस्सा फूटा है ,
 परशुराम आश्वस्त रहो तुम ,
 नहीं कहीं भी ' धनु ' टूटा है ,
 परशुराम तुम क्रोधित क्यों हो ?  
 नहीं जरुरत 'थू -'  या  ' छी-' की |
चिंगारी जब उठे ,शमन कर ,
 बढ़ें ,जो ,आगे 
तो कभी नहीं ये बक -बक होगी ,
बढ़ती जाती बात,लगाती आग ,
रोकें ,गर जो स्व-विवेक से ,
 तो कभी नहीं ये झक-झक होगी | 
ईश्वर , ने जब  रचे रंग है ,रंग रहेंगे ,
दिखने में ,वे भले ' श्वेत ' हों ,
 पानी की बूंदों में ' वे ' अलग दिखेंगे ,
' इन्द्र-धनुष का खिलना भी तो ,
 एक टा है ,
 ' हस्ताक्षर ' है इस धरती पर ,कहीं,
 कुछ ' गेय ' घटा है   

इससे तो बस ,आग बढ़ेगी ,
कौन जलेगा ,कौन बचेगा ,
अर्थ-हीन  है ,लेकिन तय है , 
कविता ही  , क्षत- विक्षत होगी ,
आगे राज तुम्हारा ,तुम जो चाहो ,
लेकिन भय है ,
बनी हुई  ये सुन्दर ' मूरत ',
खंडित  होगी ,

परशुराम तुम क्रोधित हो ,तो ,
शमन करो ये क्रोध ,
और फेंको ये फरसा ,
मीठे-मीठे  गीत सुने बिन ,
बीता लम्बा ---------- अरसा ||

laghu-shabd chitra


एक सुवासित कक्ष में,बेतरतीब ढंग से कुछ कुर्सियां पड़ी रहती थी,लोग 
( महिला और पुरुष ) सप्ताहांत में वहां एकत्रित होते थे | कुछ के  पास 
समय अधिक था ,वे तो रोज मिलते थे कभी -कभी तो एक ही दिन में 
कई बार मिलते थे | अपने-अपने स्वभाव अनुसार विषय का चुनाव कर 
चर्चाएँ ,बात-चीत किया करते थे |कभी-कभी संख्या बढ़ जाती थी ,तब,
छोटे -छोटे गोल बनाकर बैठ जाया करते थे ,और दूर बैठे लोगों से हवा 
में हाथ लहराकर ,अभिवादन का आदान-प्रदान भी कर लेते थे | कभी-कभी 
मन होता तो सभी लोग एक ही बड़े गोले में बैठते थे ,तब बेंतबाजी शुरू 
कर खूब मनोरंजन करते थे ,खान  -पान भी चलता था ,गेय गीत ,गजल,
शास्त्रीय-संगीत ,कविता -अकविता ( कोई नया व्यक्ति /मेहमान भी कुछ 
कहे/पढ़े तो उसका सब उत्साह-वर्धन करते ), कुछ ' कनफुसिया ' भी 
चलती |कक्ष की एक विशेषता थी ,कि,वह  चोबीसों घंटे खुला रहता था 
कुछ लोगो को रात में बैठने का समय मिल पाता था , 
तो एक गड़बड़ भी कभी-कभी हो जाया करती थी ,
कमरे में घुसते और  बातों को पूरा सुने ,
पूरा समझे बिना चलती बहस में कूद पड़ते,फिर क्या होता ?
आधे सोये आधे जागे ,
कुर्सियां जो ,बेतरतीब पड़ीं होती या गोलाकार वे धीरे धीरे आमने-सामने हो जाती 
और चल पड़ती बहस ,कभी सार्थक भी ,लोग खेमों में बटे साफ-साफ दिखते ,
तभी कुछ लोग सिगार,सिगरेट,या पान-बीडी खैनी के लिए बाहर निकल आते 
और तारो-ताज़ा होकर अपनी -अपनी 'साइड' बैठ जाते ,और कुछ दर्शक-दीर्घा 
में बैठ जाते ,और तालियाँ   पीटते आंखे बंद करके ,कुछ आंखे खोलकर ताकि 
कुछ हंगामा -सा होता रहे और T.R.P.बढती रहे |कुछ अन्वेषी कमरे में घुसते 
ही लोगो के लाल-लाल चेहरे देख कर चकरा जाते कि ,ऐसा क्या हो गया है ,जो,
सब तने बैठे हैं | धीरे ---धीरे पड़ताल करने पर पता चलता है ,कि,
कुछ  सामान चोरी हो गया है ,उसकी पड़ताल में लगे हैं लोग ,तभी पता लगता
है कि समानता की वजह से उठ गया था  ,चोरी का कोई इरादा ही नहीं था |
उम्मीद तो यही है कि भ्रान्ति  मिट गयी होगी और कुर्सियां फिर ,पहिले की 
तरह से सज गयीं होंगी ,अब ---
महिपाल   
        

क्या है जिंदगी ?


सांप -सीढ़ी का खेल है ,ये जिंदगी 
( के.पी .त्यागी से उधार ) 
शह और मात का खेल है ,ये जिंदगी 
सुबह,दोपहर,शाम है ,ये जिंदगी 
बदलते मौसम का नाम है ,ये जिंदगी 
न अपनी ख़ुशी से आना है ,जिंदगी 
न अपनी से ख़ुशी से जाना है जिंदगी 
जिन्दगी ,महाभारत है 
जिंदगी,मोहब्बत भी  है
जहाँ दिल लग जाये ,
वह भी है जिंदगी ,
जहाँ दिमाग फस जाये ,
वह भी है जिंदगी ,
कभी किसी से जुड़ जाना ,
है जिंदगी ,
फिर उसी से मुड जाना भी,
है जिंदगी 
कभी जुड़ना ,कभी मुड़ना ,
है जिंदगी ,
सन चालीस से दो हजार ग्यारह 
का सफ़र है ,मेरी जिंदगी 
तुझको सलाम है ये जिन्दगी 
सलामत रहे तू जिंदगी ,
कितने रंग देखें हैं  तूने जिन्दगी 
कितने ढंग बरते है तूने  जिन्दगी
कितनी बकवास थी ये जिन्दगी ,
कितनी खुशगवार थी ये जिन्दगी  ,
सोचो तो सदाबहार है ये जिन्दगी ,
उठापटक है ये जिन्दगी 
प्रवाह है जिन्दगी ,
लहूलुहान भी है जिन्दगी ,
हे भगवन,भगवान  है जिन्दगी 
रामायण ,पुराण है जिन्दगी ,
चलती ,दुकान भी  है जिंदगी ,
'मन चंगा तो कठौती में गंगा भी जिन्दगी ,'
उलझे तारों को सुलझाना भी जिन्दगी ,
सुलझे तारों को उलझाना भी जिन्दगी ,
क्या क्या है जिन्दगी ,
क्या नहीं है जिन्दगी ,
कभी नाम,
कभी बदनाम है जिन्दगी ,
कभी काम ,
कभी विश्राम है जिन्दगी ,
चालाकी भी जिंदगी ,
झंझटो से दूर रहना भी जिन्दगी ,
चुनोती से झूझना भी है जिन्दगी,
शेर ,हाथी, श्रगाल,लोमड़ी ,बन्दर 
 सभी है एक जिन्दगी ,
हाइड्रोजन-ओक्सिजन ,
कार्बन-हाइड्रोजन ,है जिन्दगी ,
इनका रचना संसार भी है जिन्दगी 
इन्ही का लब्बो-लुबाब है जिन्दगी 
चांदनी,जुल्फ ,रक्श, शेर-ओ-शराब,
( फ़िराक साहेब से मुआफी के साथ )
ये भी है जिन्दगी   ,
मासूमियत,बचपन,तरुणाई,
जवानी,प्रोढ़ता या बुढ़ापा ,
अलग-अलग पड़ाव तेरे ,
ये जिन्दगी ,
एक स्वछन्द  सैलाब  ,
की मानिंद बहती  जिन्दगी ,
गाती ,चहकती जिन्दगी |
बस यही है  जिंदगी ,
मेरी,तुम्हारी या किसी की जिंदगी |
----------------ॐ------------------
 

Sunday 28 August 2011

jaddojahad

न कोई बौराया है,न कोई प्र.मंत्री चुन रहा है- ये लोग भी ,यंग 
रोजगार  में लगे -डॉ , इंजी.,प्रो.आदि -(ALERT *)समूह के हैं  और देश के भविष्य के लिए ' हकीकत 'में चिंतित है और ,कोई 
'मौसमी ' टोपीधारी भी नहीं है और न ही नेट पर उंगली चलाकर 
सद्भाव फ़ैलाने का दावा कर रहे हैं |इन लोगो को यह भी मालूम 
 है कि ,लोकपाल बिल लोकसभा में १९६८ में पेश हुआ और १९६९ में पास भी हुआ था लेकिन राज्यसभा ने अस्वीकृत कर दिया था ,इन्हें यह भी मालूम है कि इस लड़ाई में कौन सच्चा सिपाही है और कौन ' शो पीस '-ये  चिन्तनशील है,विवेकवान 
है | ये तो आपस में मिलकर धारा में मुर्दों कि तरह बहने वालों 
को अपने संदेशों से बीच-बीच में जगाते रहतें है ,और चाहते है 
कि विवेकशील ,ज्ञानवान लोगो तक वह जानकारी पहुंचाई  
जाये ,जो आमतोर पर (सही-सही ) मालूम नहीं होती है |
 लकवा ग्रस्त शासक दल के राजकुमार  और एक नागरिक -
जमात के सदस्य ,अरविन्द केजरीवाल जो इस आन्दोलन 
का एक ओजस्वी ,मेधावी प्रवक्ता है | अभी इतना ही -महिपाल 
A -association ,L -literary & lawyers ,E -educationists
R -researchers ,& T -technologists  
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kuchh shabd chitra

१-बात लगभग पचपन वर्ष पुरानी है ,मैं अपने गाँव अपने किसी छोटे भाई 
या बहिन को लेकर बस से ग्वालियर से जा रहा था |बस अड्डे पर ही उसने 
कहा प्यास लगी है ,मैं उसे लेकर बस से नीचे उतरा और उसे पानी पिलाया 
और में वापिस मुड़ा ही था कि पानी वाले ने आवाज लगाई और कहा ,कि,
पैसे तो देते जाओ ,पानी क्या मुफ्त में आता है |चुपचाप पैसे देकर हम बस 
में बैठ गए | बस चल दी ,एक -डेढ़ घंटे के बाद बस मुरेना ( जिसे बाहर
 के लोग --) पहुंची साथ के बच्चे ने फिर पानी माँगा ,में फिर उसे लेकर 
नीचे उतरा और पानी पिलाकर ,पिलाने वाले को पैसे देने लगा ,तो पलटकर 
बोला " काये मोय नरक में भेजेगो का  '-अभी तक टका है स्मृति पटल पर 
सूखे गुलाब ,हिलते हाथ या ' कोई ' -आँखे   तो फिर भी धुंधली पड़ गयी 
हैं पर ये चित्र नहीं |

२  मैं कॉलेज में पढने लगा था ,मेरे कॉलेज का पुराना नाम -विक्टोरिया कॉलेज 
था और १९५७ में महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज  किया गया था |पांच-सात हजार 
विद्यार्थियों की संख्या रही होगी | छात्र जीवन के १९५९ वर्ष में ,चुनाव लड़ने की 
उमंग उठी |मेरे महाविद्यालय के दो कैम्पस थे ,एक में विज्ञानं और दूसरे में 
कला,कानून और वाणिज्य थे | मुझे किसी ने खड़ा नहीं किया था ,हाँ दूसरे
कैम्पस में मेरा एक दोस्त ( आज वह नहीं है उसकी स्मृति को नमन ) था  ,
हम दोनों ही साथ थे | राजनीति ' करने ' से तब भी परहेज था और आज भी है |
 राजनीति करने और राजनीति समझने में अंतर है | मेरे कैम्पस से दो उम्मीदवार
 थे , दूसरे कैम्पस से केवल एक | दूसरे कैम्पस से जो उम्मीदवार थे ,उनसे लोग 
भयभीत थे ,ऐसा मुझे बाद में पता लगा था |खैर ! में चुनाव आराम से जीत गया 
गया |कुल छै रुपये का खर्चा आया | लोगों का अनुमान था जीतने के बाद मेरी 
पिटाई होगी ,ऐसा कुछ हुआ नहीं| शपथ ग्रहण में अंडे जरुर फ़िके थे  | धीरे धीरे
 वह  विरोध समाप्त हो गया था और सब सामान्य हो गया था | मैंने एक आई .ऐ .
एस .( मुख्य के  सचिव स्तर) अधिकारी को एक जज के रूप मे बुला लिया था 
इस पर मेरे शिक्षक सलाहकार की डाट सुननी पड़ी थी | क्या सोचकर बुलाया 
है तुमने , कि , I .A .S . कॉलेज प्रोफेसर से बड़ा होता है |मेरे हाँ कहने पर मन
 के परदे पर पड़े तमाम जाले झाड दिए थे |किसी सन्दर्भ में -अधिकारी जी का एक 
कथन -जब विद्यार्थी अकेला बहुत  आज्ञाकारी ,जब दो तो आज्ञाकारिता मे कुछ 
कमीं ,जब तीन तो आज्ञाकारिता कि कोई उम्मीद नहीं और जब चार तो भीड़ हैं 
आप अपनी सुरक्षा का ध्यान रखिये |इन्ही अधिकारी के एक दामाद मेरे 
विश्वविद्यालय मे भूगोल विभाग के अध्यक्ष थे और फिर वो रेक्टर और कुलपति 
भी हुए और १९५९ का उनके ससुर साहेब का कथन हम दोनों के बीच में एक 
सेतु रहा (उनकी स्म्रतियों को नमन )-अभी तो फिल्म बाकी है मेरे पाठक (यदि 
कोई है तो )
फिर ६० में दूसरा चुनाव कुल तीन रुपये के खर्चे में जीता उपाध्यक्ष पद का ,बिना 
किसी ऐसी हलचल के जो याद हो| अब ६१ में मेरा कैम्पस स्वतंत्र कॉलेज हो 
गया और उसका नामकरण हुआ -गवर्मेंट साइंस कॉलेज ,उसका स्वर्ण जयंती वर्ष 
 मनाया जा रहा है ,उस के छात्र-संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव भी जीता | चुनाव ,
 लड़ने की पात्रता केवल मेरी थी ,में निर्विरोध ही बनता यह हजम नहीं हो रहा था 
तो चुनाव सम्बन्धी नियमों में संशोधन कर ,चुनाव हुए और तेरह रु.आठ आने 
 के खर्चे में यह चुनाव भी जीता ( इस जीत के एक गवाह इस ई -कविता समूह मे 
हैं ) | हड़ताल करते थे ,तो जबरदस्ती नहीं होती थी ,कॉलेज बेल बजा कर आव्हान 
करते थे ,और लड़के निकल आते थे | पर केवल ऐसा ही नहीं  था |१९५० में 
छात्रों का आन्दोलन हो रहा था और गोली कांड हो गया था | दो छात्र  स्कूल के मारे
 गए थे ९ अगस्त को (हरी सिंह -दर्शन सिंह ,जो बेचारे कक्षा नौवी मे पढ़ते थे ,तब भी 
कोई काला डायर था ,अन्यथा ----), इस दिन आज भी स्कूल बंद कराते है बच्चे 
मैं जब पूछता हूँ ,क्यों तो बता नहीं पाते हैं और मे भी नहीं बताता हूँ क्योंकि 
अभी उस पुलिस अधिकारी को ले कर उबाल आ  आता है ,अब तो सब स्म्रतियों को 
नमन | छात्र जीवन से विदा हुए १९६२ जून मे |
                                                          क्रमशः-----अगले अंक मे 
                                                                    

ek najariya yah bhi

अभी ' अन्ना ' जी के आन्दोलन ने सरकारी सहयोग और आम जनता की 
भागीदारी तथा ई -मीडिया के प्रोत्साहन से बहुत  प्रेरक गति हासिल कर ली 
है | भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु ' जन लोकपाल बिल 'को पास करवाने की मांग 
ठीक हो सकती है ,अन्ना की स्वयं की विश्वसनीयता २४ कैरेट की है |
उनकी सादगी पर कौन न बलिहारी जाए |
यहाँ एक प्रश्न में उठाता हूँ -इन्कलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद किया जाता है ,
क्रांतिकारियों का नाम अन्ना बार बार लेते हैं ,भारतमाता की जय बोलते हैं ,
वन्दे-मातरम् गाया जाता है ,जंतर -मंतर के अप्रेल में हुए आन्दोलन के समय 
मंच में पीछे भारत माता की तस्वीर लगाई गयी थी ,वह इस समय हटा कर 
गाँधी जी तस्वीर लगाई गयी है ,पूछने पर ' चालाक ' लोग जबाब  देते हैं कि
उससे गलत सन्देश जा रहा था |
फिर इन चालाक लोगो के लिए , बाबा रामदेव कि मुहिम जो पिछले एक वर्ष से 
सुनियोजित ,सुगठित ,सुविचारित ढंग से स्वस्थ भारत के निर्माण के  लिए 
चलायी जा रही है ,क्या है ?
तमाम कर्मठ बुद्धिजीवी जो वर्षों से  स्वदेशी  की अलख जगाये हुए थे 
( बनवारी लाल जी शर्मा ,इलाहाबाद ,स्व.राजीव दीक्षित ,वर्धा --आदि )  ,
कोई प्रभावी न हो पा रहे थे |भाषणों से कुछ सैकड़ा ,और छपी सामग्री से 
थोड़ा और ज्यादा  और शने शने वो कुंठित भी होने लगे थे | तभी एक उर्जावान ,
नौजवान जो पिछले  एक दशक से देश और विदेश में अपने करोड़ों मुरीद 
बना चुका था और स्वयं हर तरह से सक्षम बन चुका था -के संपर्क में 
एक  उर्जावान ,ज्ञानवान वृहद ज्ञान भंडार का मालिक और जबरदस्त 
तार्किक ,तथ्यात्मक प्रस्तुति देने क़ी क्षमता वाला विद्वान ( राजीव दीक्षित ,जो 
अब हमारे बीच नहीं है )आया |
पिछले दो  वर्षों में यह मिलन  बाबा रामदेव और राजीव जी का देश में 
'भारत  स्वाभिमान ' को खड़ा करने में और उसे विस्तार देने में सफल 
रहा | बाबा क़ी अद्भुत नेतृत्व क्षमता और राजीव जी क़ी विलक्षण प्रस्तुति 
ने ,नए विरोधी पैदा कर लिए जो देश से अधिक विदेशों मे थे /हैं |
दवा उद्द्योग ,पेप्सी -कोला ,यूनी लीवर -आदि से जुड़े लोग |
काले धन ,भ्रष्टाचार  पर आक्रामक तेवर ( जो होने भी चाहिए ) रखने वाले 
बाबा को पीछे करने के लिए भारत माता क़ी तस्वीर हटवा दी है और 
गांधीजी क़ी लगा दी है | इन ' चालाक ' लोगो क़ी अपनी क्षमता ,भीड़ जुटाने 
क़ी तो है नहीं तो उस बुजुर्ग से कहते हैं कि  ' अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे 
साथ है '|इस उम्र में 'अन्ना' का काम दिशा देने का हो सकता है ,पर सघर्ष   
करना इन नौजवानों का होना चाहिए |
 इस देश में भारतमाता की तस्वीर , को कला की आजादी के नाम पर एक नामी-गिरामी 
कलाकार विकृत रूप में पेश करता है ,जब तीव्र प्रतिक्रिया होती है ,इसको 
तरह तरह के नाम दिए जाते है ,तब देश छोड़ जाता है पर क्षमा नहीं मांगता |
(खैर , ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे ) 
इस समय तो एक ही प्रार्थना है कि हमारे 'अन्ना ' स्वस्थ रहें और इन एरियल बेचने 
वाले या नक्सालियों का समर्थन करने वालों से भी भगवान उन्हें बचाएं |
मुझे पूरा विश्वास है ,कि,देश को बाबा रामदेव का पथ प्रदर्शन , नया नेतृत्व भी खोज कर देगा |
देश कि जनता  ,सरहदों को मानने वालों और उसकी  रक्षा करने वालों को पूर्ण बहुमत दिलाये 
जिन्हें भारतमाता में ,सर्व धर्म समभाव ( छद्म धर्म निरपेक्षता नहीं )में विश्वास है ,जिनके 
पीछे moral force का डंडा हमेशा रहता है |जब पूर्ण बहुमत होगा तो गठ बंधन की मजबूरियां 
भी नहीं होंगी   |
कानून तो देश में अभी भी बहुत हैं पर उन्हें लागू करने का मनोबल नहीं है | फिर ,एक बार में १९७४ 
में श्री के .आर .गणेश वित्त राज्य मंत्री ,भारत सरकार का उदहारण देना चाहूँगा ,जिन्होंने 
हाजी मस्तान और यूसुफ़ पटेल ( बड़े तस्कर )को प्रचलित नियमों के तहत ही सींकचों के 
पीछे पहुँच दिया था | अभी इतना ही -शुभेच्छा के साथ -
 -महिपाल   

ANNA STIR

समूह के सभी सदस्यों को जान कर हर्ष होगा कि आप सुधिजनों कि प्रेरणा से एक बिलकुल 
ताज़ी रचना का जन्म हुआ है ,नाम करण के लिए आपको सोंप रहा हूँ |
        सत्ता से बेदखल कराना,
        कोई मुश्किल काम नहीं है ,
       किसे बिठाएं ,जो चल पाए ,
      सबसे मुश्किल काम यही है |
       
     नवजागरण ने दी थी  जो क्रांति ,
    तीन साल में मिट गयी भ्रान्ति ,(१९७७-१९८० )*
 इसमें से निकले कुछ नए जिन्न ,
  जिनकी मति थी फिर भिन्न भिन्न |

सुलगी फिर एक चिंगारी ,
लग गयी आग ,
 दांये बांये हो गए साथ ,
फिर सत्ता परिवर्तन का हुआ खेल ,
बेमेल ,मेल फिर हुआ फेल,
उपहार मिला , आतंकवाद ,
नस नस में फैला  जातिवाद (१९८९-१९९१ )

जब तक विकल्प न हो साफ साफ ,
भावों में हमें न बहना है ,
' अन्ना ' को पूरा आदर ,पर करें माफ़ ,
इससे ज्यादा न अभी कुछ कहना है ,
बस भावों में अभी न बहना है ,
न बहना है ,न बहना है 
 -महिपाल , ग्वालियर ,म .प्र .(०७५१ -२६६३८३६ ),अगस्त ,१९ ,२०११ 

 

Chintan Discussion

Dear Prof .Gupta,
                            I m highly impressed by ur analytical,factual nd categorical expression n the current debate. Although ,joining late ,however,i feel my filler is not out of context .

 I wish to add two points .One, about Kargil,the other about Mr.Nehru .
                    Kargil victory ,was not b'cauz of ' BOFORS ' GUN AT ALL 
rather the firm determination to get the hills freed from invaders 
at ANY COST (WHATEVER IT MAY BE )
                   MY fellow country men ,,in 1999 we were lacking
 army officer of the calibre of.Jagjeet Singh of 1965 War,who
managed the CANNON FODDER ,essential in such terrains by hanging lanterns in the neck of sheeps and pushing them to climb
the hills ,creating the impression of movement of a large army 
contingent under the fire cover .In short ,this forced the Pak contingent to flee . (The same soldier 
Lt.Gen.jagjit Singh ,who took charge on ground of ,the then East
Pakistan  in Dhaaka  in 1971 to fecilitate the surrender of 93000
thousands Pak soldiers  ),
    So the Same need  i.e.CANNON FODDER was fed , this time 
in 1999 ,through the sacrifice of very large number of soldiers
very large number almost unbelievable to achieve the ouster of 
a handful of Pak occupants from that difficult terrain 
  Those who r mesmerized by Mr.Nehru's  style of running the 
country ,may pl.note that -Defeat in war against China was b'cauz of ,Nehru's wrong  choice of putting his 
first cousin ,Lt.Gen.B.M.Kaul  G.O.C. eastern command ,
 in charge of operations in that area ,,who was almost a no soldier
but an officer only in too much of contrast as that of SAM  who succeded kaul during debacle and started holding firm to the ground .
        Even Kashmir  P     R   O   B   L    E      M, as it is  ,today,is the
U P H A R by Mr.Nehru to his fellow countrymen and generations to come .With regards to all and malice to none ,
- Mahipal

Friday 29 July 2011

jindgi badnam

                                                                जिंदगी   

जिंदगी बदनाम हुई जाती है ,
मेरी हर कोशिश नाकाम हुई जाती है |
लेकिन इन ध्रुव पंक्तियों से ,
यह न समझो की जिन्दगी से
 बहुत       मायूस हूँ मैं ,
 पर यह भी सच है  कि ,
जिंदगी से नहीं खुश हूँ मैं  |

दूध से धुली हुई    ,चाँदनी से उजली ,
बड़े जतन से संवारी,
प्यार से पाली हुई ,मेरी ये जिंदगी 
जिस पर मुझे नाज था ,
अभिमान था ,सिद्धांत -का आधार था ,
जो अडिग थे ,अटल थे   |
उन्हें डहाने क़ी कोशिश की ,
उन्हें बहाने क़ी कोशिश की ,
न वो ढहे ,  न वो बहे | 

तुम हुंकार सकते हो ,
 फुंकार सकते हो ,
चूंकि तुम ' बॉस  'हो मेरे ,
जो कि एक   भ्रम है ,
जब तक मुझे शरम है ,
बहुत कोशिश की मुझे पीसने क़ी,
 मगर , सचाई भी तो कोई चीज होती है |
बड़े बाबू न खुश हुए हों ,
मगर ,जनता तो मेरे दर्द देख रोती है |

उसकी आँख के आंसू बने सहारे हैं ,
जब जब भटका ,बने किनारे हैं |
उन किनारों पर बैठ कर मैंने साँस ली है ,
जिन्दगी धूमिल न हो ऐसी आस की है |
कुछ ,अपनी तो आदत है ,
व्यर्थ खुशामद से नफरत है |
फिर कैसे कह दूँ झूंठ बात को ,
रात को दिन ,और दिन रात को |

सत्य सिसकता रहा कैद में शैतान की ,
निकल रही है ,यहाँ लाश ईमान की |
देख इसी शोषण को , 
मेरा मन हो बैठा है बागी |
स्वाभिमान जागा है ,
पौरूषता  जागी |
बागी मन को समझाना नाकाम है ,
बागी तन को समझाना नाकाम है |

जिंदगी सरल,सुंदर ,पर बदनाम है ,
उसके माथे पर लगाया जो दाग है ,
हर क्षण ,सीने में सुलगाता वो आग है ,
आग बुझाने  की कोशिश नाकाम हुई जाती है ,
जिंदगी बदनाम हुई जाती है ,
मेरी   हर कोशिश नाकाम हुई जाती है ,
जिंदगी बदनाम हुई जाती है |





        

Sunday 24 July 2011

ek vichar

एक विचार -मार्क्सवादी के त्याग ,
और तपस्या का ड्राफ्ट ,
राजनैतिक बैंक में हो गया कैश |
राष्ट्रवादी की हुंडी का ,चेरिटी फंड से हुआ भुगतान  |
गांधीवादी    ,मुएजिअम(museum )मे,
 सज कर पा गए सम्मान |
और ,हम खुला छूटने के आरोप में ,
कान्जीहाऊस में किये गए कैद |
सूत्रधार --
एक वकुल ,
एक  गिरगिट |   

meraa prayaas

मेरा प्रयास है ब्लॉग में नया पोस्ट करने का 

Saturday 2 July 2011

praarambh

में कुछ पुरानी रचनाओं से इस ब्लॉग का प्रारम्भ कर रहा हूँ |
 महफ़िल -
दोस्तों की सजाई हुई महफ़िल ,
एक मयखाना ,
उनके छेडे हुए राग -एक शराब ,
कसम खाई न पीने की ,
पर शाम होते ही कदम उठ गए
और हम उसी मयखाने में जम गए |
फिर वही चख चख -
राजनीति ,धर्म ,सेक्स औ क्या नहीं ,
जहाँ  से चले रहे हम वहीँ के वहीँ |