Tuesday 29 November 2011

व्यापार


एक आये ,
उन्होंने बनाया था कोई तेल ,
पता नहीं उन्होंने बनाया था ,
या कहीं पाया था ,
पर वे बेच रहे थे ,
बार -बार कहते थे ,
कि शुद्ध ब्राम्ही आंवला तेल है ,
बड़े गुण है ,
सिर में ठंडक रखता है ,
लगाने से चित्त प्रसन्न रहता है ,
और स्वाभाविक ही ,
काम करने का माद्दा बढ़ता है ,
अधिक काम करने से ,
आर्थिक स्थिति सुधरती है |

फिर ,कहीं से ,
एक और आये ,
वह भी लिए थे तेल ,
ब्राम्ही आंवले का ,
दोनों के तेल एक से थे ,
उनमें ,अधिक तेल बेचने की ,
प्रतिस्पर्धा जन गयी ,
देखते ही देखते ,
बात ही बात में ,
दोनों में ठन गयी ,

अब वे आंवले के गुणों को छोड़ ,
उसके ' मेक ' पर उतर आये थे,
और 'मेक ' के प्रचार में ,
जाने क्या -क्या गुल खिलाये थे ,
किसी के केश लहराहे थे ,
तो किसी के कपडे उतरवाए थे ,

' मेक ' की बात भीड़ ,
 की समझ में नहीं आई ,
आंवले को गुणों को समझने वालों ,
में से किसी एक ने ,
अपना आंवला ले ,
अपना ही तेल बनाया ,
तो, दोनों के मुंह ,लटक गए ,
वे कुढ़ गए ,चिढ गए |

अब तो दोनों  यही कह रहे थे,
कि मेरा तेल ,तेल है ,
उसके में मिलावट ,
दूसरा और नीचे गिरा या ऊपर चढ़ा ,
सिवा मेरे कोई नहीं बना सकता ,
बिना मेरी ' प्रोसेसिंग ' के नहीं बनता तेल,

भीढ़ में से किसी ने कहा ,
भाई आंवले में गुण बहुत है ,
फिर ' मेक ' और ' प्रोसेसिंग से क्या वास्ता ,
वे नाराज ,हो गए ,
क्योंकि वे ,
ख़ाली तेल ही नहीं बेच रहे थे ,
वरन ,झोले में छिपाए थे ,
कुछ हथगोले और पिस्तोल ,
ऐसा ही एक तेल बेचने वाला ,
पहिले ,भी आया था ,
सोलहवीं सदीं में ,
जहाँगीर के दरबार में ,
जिसकी त्रासदी भुगती है ,
पूरे चार सो बरस ,
हम ,हमारे बेटे ,
संभवतः बेटों के बेटे ,
अभी और भुगतेंगे |

फिर शायद ,उभर पायें ,उबर पायें ,
इन मानसिक व्याधाओं से ,
या कि प्राचीन सभ्यता से ,
गुरु और गुरुतर ,
भार सोंपे जा रहे हैं ,
जिंदगी के ये हसीं लम्हे , 
हम उनमें जी भी नहीं सकते ,
अपना कह कर भोग भी नहीं पाते |

सारी दुनियां,
और उनके साथ मिलकर ,
कुछ ,हमारे अपने दुभाषिये ,
हमें ' सभ्य ' बनाना चाहते है ,
छीन कर,
हमारी ' रोटी ',
और  ' लंगोटी '  ,
हमें  ' बटर ' ,और ,
' टेरीन 'से लड़ना चाहते हैं |

हम सुन रहे हैं ,
सुन ही नहीं ,वरन ,
भुगत रहे हैं ,
ये ,प्रचार -प्रसार ,
देख रहे हैं ,उसके प्रकार ,
और चलता हुआ ,
यह सारा ----------व्यापार |
हमें जीने की कला ,
न सिखाओ ,
चूँकि ,हमारा ,
जीने का अलग ही ---- आधार |
-महिपाल    
( यह रचना अमेरिकी प्रभाव के अनावश्यक दबाब को चुनोती 
देने वाला  वातावरण बनाने का एक छोटा सा प्रयास था -रचना काल 1972,स्थान ,210-campus , I.I.T.Kanpur -16 
        

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