Wednesday 30 November 2011

Rashtraniti


मित्रो एक लम्बे अरसे बाद ,कुछ लिख रहा हूँ ,इस बीच घटा भी बहुत कुछ है |थोड़ी उहा-पोह भी है ,कि,'नेट' पर चल रहे संवाद के ओर -छोर मिल नहीं पा रहे ,तो सोचा अपनी बात ही कह डालूं |अच्छी चर्चा चलेगी ,तो बढ़िया नहीं चलेगी ,तो भी बढ़िया मेरी 'भड़ास'निकल जाएगी |
अभी ,मैं भारत एक राष्ट्र है और जहाँ , राज करने के लिए प्रजातान्त्रिक प्रणाली लागू है ,विषय पर अपने विचार रख रहा हूँ |
व्यवाहरिक रूप में जहाँ पचास 'गीदड़' और ,एक लोमड़ी मिलकर ,उनंचास 'शेरो' 'पर राज कर सकते हैं | दर्द ये है कि, एक राष्ट्र के निर्माण में लगी आहुतियों को
 ' आज 'के लोग इतनी जल्दी भुला क्यों देतें है ?दुर्भाग्य ये भी है कि सही इतिहास लिखने में इनकी 'नानी क्यों मरती है '? क्या केवल इसलिए कि, जिनको ये 'भद्र' लोग बढ़ा-चढ़ा के पेश करते हैं ,'वो 'निहायत ही 'बौने' साबित होंगे उनके सामने जिनको ये भुला देना चाहते है |मैं 'भावनाओं में जीता हूँ ',मेहनत की रोटी खायी और खिलाई है बुद्धि का उपयोग रक्षा के लिए करता हूँ ,शोषण के लिए कदापि नहीं |कुलाधिपति,कुलपतियों,को आयना दिखाया है ,जरुरत पड़ने पर उत्पाती समूहों पर सफल नियंत्रण किया है अपने 'आत्मबल' के साथ |इसके पीछे ,राणा प्रताप ,शिवाजी,भगत सिंह ,चन्द्र शेखर आजाद ,राम प्रसाद 'बिस्मिल',सुभाष चन्द्र बोस    की तस्वीरें बचपन से घर में देखी हैं ,घर में साधू-संतों की सेवा , पूजा पाठ का माहौल भी मिला , साहित्यिक चर्चाएँ भी मिली ,इन सबने जो संस्कार निर्मित किये वो मेरी 'पूंजी 'बन गए ,संबल बन गए | 
इसी आधार पर क़ुरबानी करने वाले मेरे 'नायक'रहे ,और अभी भी हर क़ुरबानी 
के लिए तैयार व्यक्ति मेरा नायक है ,सुविधा-भोगी या सुविधा पर बिका व्यक्ति 
मेरी drasti (नजर )में एक साधारण व्यक्ति है |
१५ अगस्त १९४७, को मिले 'खंडित' भारत को सत्ता हस्तांतरण में कुर्सी हस्तगत 
करने वाले साधारण व्यक्ति तो अंग्रेजों के 'चाटुकार'ही थे ,और अंग्रेजों ने ही अपनी सुविधा के लिए ,उनके यहाँ से चले जाने के बाद भी उनके ही हितों की  रक्षा कर सकें वह तमाम भद्र लोग |तरह-तरह के टोटकों ,तदर्थ -वाद से देश की 
शिक्षा ,स्वास्थ्य,शासन चलाने लगे और केवल और केवल कुर्सी पर काबिज 
होने की योजनाओं के लिए ' राजनीति 'में डूबे रहे और 'राष्ट्रनीति' बनाने से 
कतराते रहे |न अतीत से सीखा ,न जापान से ,न इसराइल से |बात आधी-अधूरी 
सी लग सकती है ,पर समझदारों के लिए पूरी है |
जरुरत राष्ट्रनीति की है ,जहाँ नक्सलप्रेमी ,कश्मीर पर जनमत संग्रह ,
अख़बारों की सुर्ख़ियों में रहने का सपना पालनेवाले या 'मेगसेसे 'पाने 
की होड़ में लगे छद्म बुद्धिजीवी  को उसकी सही जगह पर बैठाया जा सके 
और सीमाओं की रक्षा में लगे लोगो की क़ुरबानी का मजाक बनाने वालों 
को सबक सिखाया जा सके |
छिछोरी 'राजनीति' की नहीं   

No comments:

Post a Comment