Saturday 2 July 2011

praarambh

में कुछ पुरानी रचनाओं से इस ब्लॉग का प्रारम्भ कर रहा हूँ |
 महफ़िल -
दोस्तों की सजाई हुई महफ़िल ,
एक मयखाना ,
उनके छेडे हुए राग -एक शराब ,
कसम खाई न पीने की ,
पर शाम होते ही कदम उठ गए
और हम उसी मयखाने में जम गए |
फिर वही चख चख -
राजनीति ,धर्म ,सेक्स औ क्या नहीं ,
जहाँ  से चले रहे हम वहीँ के वहीँ |

2 comments:

  1. आपकी यह रचना मौजूदा यथार्थ का सामना करने की कोशिश का नतीजा है।

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  2. आरंभ …
    शुभारंभ !



    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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