Sunday 28 August 2011

jaddojahad

न कोई बौराया है,न कोई प्र.मंत्री चुन रहा है- ये लोग भी ,यंग 
रोजगार  में लगे -डॉ , इंजी.,प्रो.आदि -(ALERT *)समूह के हैं  और देश के भविष्य के लिए ' हकीकत 'में चिंतित है और ,कोई 
'मौसमी ' टोपीधारी भी नहीं है और न ही नेट पर उंगली चलाकर 
सद्भाव फ़ैलाने का दावा कर रहे हैं |इन लोगो को यह भी मालूम 
 है कि ,लोकपाल बिल लोकसभा में १९६८ में पेश हुआ और १९६९ में पास भी हुआ था लेकिन राज्यसभा ने अस्वीकृत कर दिया था ,इन्हें यह भी मालूम है कि इस लड़ाई में कौन सच्चा सिपाही है और कौन ' शो पीस '-ये  चिन्तनशील है,विवेकवान 
है | ये तो आपस में मिलकर धारा में मुर्दों कि तरह बहने वालों 
को अपने संदेशों से बीच-बीच में जगाते रहतें है ,और चाहते है 
कि विवेकशील ,ज्ञानवान लोगो तक वह जानकारी पहुंचाई  
जाये ,जो आमतोर पर (सही-सही ) मालूम नहीं होती है |
 लकवा ग्रस्त शासक दल के राजकुमार  और एक नागरिक -
जमात के सदस्य ,अरविन्द केजरीवाल जो इस आन्दोलन 
का एक ओजस्वी ,मेधावी प्रवक्ता है | अभी इतना ही -महिपाल 
A -association ,L -literary & lawyers ,E -educationists
R -researchers ,& T -technologists  
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kuchh shabd chitra

१-बात लगभग पचपन वर्ष पुरानी है ,मैं अपने गाँव अपने किसी छोटे भाई 
या बहिन को लेकर बस से ग्वालियर से जा रहा था |बस अड्डे पर ही उसने 
कहा प्यास लगी है ,मैं उसे लेकर बस से नीचे उतरा और उसे पानी पिलाया 
और में वापिस मुड़ा ही था कि पानी वाले ने आवाज लगाई और कहा ,कि,
पैसे तो देते जाओ ,पानी क्या मुफ्त में आता है |चुपचाप पैसे देकर हम बस 
में बैठ गए | बस चल दी ,एक -डेढ़ घंटे के बाद बस मुरेना ( जिसे बाहर
 के लोग --) पहुंची साथ के बच्चे ने फिर पानी माँगा ,में फिर उसे लेकर 
नीचे उतरा और पानी पिलाकर ,पिलाने वाले को पैसे देने लगा ,तो पलटकर 
बोला " काये मोय नरक में भेजेगो का  '-अभी तक टका है स्मृति पटल पर 
सूखे गुलाब ,हिलते हाथ या ' कोई ' -आँखे   तो फिर भी धुंधली पड़ गयी 
हैं पर ये चित्र नहीं |

२  मैं कॉलेज में पढने लगा था ,मेरे कॉलेज का पुराना नाम -विक्टोरिया कॉलेज 
था और १९५७ में महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज  किया गया था |पांच-सात हजार 
विद्यार्थियों की संख्या रही होगी | छात्र जीवन के १९५९ वर्ष में ,चुनाव लड़ने की 
उमंग उठी |मेरे महाविद्यालय के दो कैम्पस थे ,एक में विज्ञानं और दूसरे में 
कला,कानून और वाणिज्य थे | मुझे किसी ने खड़ा नहीं किया था ,हाँ दूसरे
कैम्पस में मेरा एक दोस्त ( आज वह नहीं है उसकी स्मृति को नमन ) था  ,
हम दोनों ही साथ थे | राजनीति ' करने ' से तब भी परहेज था और आज भी है |
 राजनीति करने और राजनीति समझने में अंतर है | मेरे कैम्पस से दो उम्मीदवार
 थे , दूसरे कैम्पस से केवल एक | दूसरे कैम्पस से जो उम्मीदवार थे ,उनसे लोग 
भयभीत थे ,ऐसा मुझे बाद में पता लगा था |खैर ! में चुनाव आराम से जीत गया 
गया |कुल छै रुपये का खर्चा आया | लोगों का अनुमान था जीतने के बाद मेरी 
पिटाई होगी ,ऐसा कुछ हुआ नहीं| शपथ ग्रहण में अंडे जरुर फ़िके थे  | धीरे धीरे
 वह  विरोध समाप्त हो गया था और सब सामान्य हो गया था | मैंने एक आई .ऐ .
एस .( मुख्य के  सचिव स्तर) अधिकारी को एक जज के रूप मे बुला लिया था 
इस पर मेरे शिक्षक सलाहकार की डाट सुननी पड़ी थी | क्या सोचकर बुलाया 
है तुमने , कि , I .A .S . कॉलेज प्रोफेसर से बड़ा होता है |मेरे हाँ कहने पर मन
 के परदे पर पड़े तमाम जाले झाड दिए थे |किसी सन्दर्भ में -अधिकारी जी का एक 
कथन -जब विद्यार्थी अकेला बहुत  आज्ञाकारी ,जब दो तो आज्ञाकारिता मे कुछ 
कमीं ,जब तीन तो आज्ञाकारिता कि कोई उम्मीद नहीं और जब चार तो भीड़ हैं 
आप अपनी सुरक्षा का ध्यान रखिये |इन्ही अधिकारी के एक दामाद मेरे 
विश्वविद्यालय मे भूगोल विभाग के अध्यक्ष थे और फिर वो रेक्टर और कुलपति 
भी हुए और १९५९ का उनके ससुर साहेब का कथन हम दोनों के बीच में एक 
सेतु रहा (उनकी स्म्रतियों को नमन )-अभी तो फिल्म बाकी है मेरे पाठक (यदि 
कोई है तो )
फिर ६० में दूसरा चुनाव कुल तीन रुपये के खर्चे में जीता उपाध्यक्ष पद का ,बिना 
किसी ऐसी हलचल के जो याद हो| अब ६१ में मेरा कैम्पस स्वतंत्र कॉलेज हो 
गया और उसका नामकरण हुआ -गवर्मेंट साइंस कॉलेज ,उसका स्वर्ण जयंती वर्ष 
 मनाया जा रहा है ,उस के छात्र-संघ के अध्यक्ष पद का चुनाव भी जीता | चुनाव ,
 लड़ने की पात्रता केवल मेरी थी ,में निर्विरोध ही बनता यह हजम नहीं हो रहा था 
तो चुनाव सम्बन्धी नियमों में संशोधन कर ,चुनाव हुए और तेरह रु.आठ आने 
 के खर्चे में यह चुनाव भी जीता ( इस जीत के एक गवाह इस ई -कविता समूह मे 
हैं ) | हड़ताल करते थे ,तो जबरदस्ती नहीं होती थी ,कॉलेज बेल बजा कर आव्हान 
करते थे ,और लड़के निकल आते थे | पर केवल ऐसा ही नहीं  था |१९५० में 
छात्रों का आन्दोलन हो रहा था और गोली कांड हो गया था | दो छात्र  स्कूल के मारे
 गए थे ९ अगस्त को (हरी सिंह -दर्शन सिंह ,जो बेचारे कक्षा नौवी मे पढ़ते थे ,तब भी 
कोई काला डायर था ,अन्यथा ----), इस दिन आज भी स्कूल बंद कराते है बच्चे 
मैं जब पूछता हूँ ,क्यों तो बता नहीं पाते हैं और मे भी नहीं बताता हूँ क्योंकि 
अभी उस पुलिस अधिकारी को ले कर उबाल आ  आता है ,अब तो सब स्म्रतियों को 
नमन | छात्र जीवन से विदा हुए १९६२ जून मे |
                                                          क्रमशः-----अगले अंक मे 
                                                                    

ek najariya yah bhi

अभी ' अन्ना ' जी के आन्दोलन ने सरकारी सहयोग और आम जनता की 
भागीदारी तथा ई -मीडिया के प्रोत्साहन से बहुत  प्रेरक गति हासिल कर ली 
है | भ्रष्टाचार उन्मूलन हेतु ' जन लोकपाल बिल 'को पास करवाने की मांग 
ठीक हो सकती है ,अन्ना की स्वयं की विश्वसनीयता २४ कैरेट की है |
उनकी सादगी पर कौन न बलिहारी जाए |
यहाँ एक प्रश्न में उठाता हूँ -इन्कलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद किया जाता है ,
क्रांतिकारियों का नाम अन्ना बार बार लेते हैं ,भारतमाता की जय बोलते हैं ,
वन्दे-मातरम् गाया जाता है ,जंतर -मंतर के अप्रेल में हुए आन्दोलन के समय 
मंच में पीछे भारत माता की तस्वीर लगाई गयी थी ,वह इस समय हटा कर 
गाँधी जी तस्वीर लगाई गयी है ,पूछने पर ' चालाक ' लोग जबाब  देते हैं कि
उससे गलत सन्देश जा रहा था |
फिर इन चालाक लोगो के लिए , बाबा रामदेव कि मुहिम जो पिछले एक वर्ष से 
सुनियोजित ,सुगठित ,सुविचारित ढंग से स्वस्थ भारत के निर्माण के  लिए 
चलायी जा रही है ,क्या है ?
तमाम कर्मठ बुद्धिजीवी जो वर्षों से  स्वदेशी  की अलख जगाये हुए थे 
( बनवारी लाल जी शर्मा ,इलाहाबाद ,स्व.राजीव दीक्षित ,वर्धा --आदि )  ,
कोई प्रभावी न हो पा रहे थे |भाषणों से कुछ सैकड़ा ,और छपी सामग्री से 
थोड़ा और ज्यादा  और शने शने वो कुंठित भी होने लगे थे | तभी एक उर्जावान ,
नौजवान जो पिछले  एक दशक से देश और विदेश में अपने करोड़ों मुरीद 
बना चुका था और स्वयं हर तरह से सक्षम बन चुका था -के संपर्क में 
एक  उर्जावान ,ज्ञानवान वृहद ज्ञान भंडार का मालिक और जबरदस्त 
तार्किक ,तथ्यात्मक प्रस्तुति देने क़ी क्षमता वाला विद्वान ( राजीव दीक्षित ,जो 
अब हमारे बीच नहीं है )आया |
पिछले दो  वर्षों में यह मिलन  बाबा रामदेव और राजीव जी का देश में 
'भारत  स्वाभिमान ' को खड़ा करने में और उसे विस्तार देने में सफल 
रहा | बाबा क़ी अद्भुत नेतृत्व क्षमता और राजीव जी क़ी विलक्षण प्रस्तुति 
ने ,नए विरोधी पैदा कर लिए जो देश से अधिक विदेशों मे थे /हैं |
दवा उद्द्योग ,पेप्सी -कोला ,यूनी लीवर -आदि से जुड़े लोग |
काले धन ,भ्रष्टाचार  पर आक्रामक तेवर ( जो होने भी चाहिए ) रखने वाले 
बाबा को पीछे करने के लिए भारत माता क़ी तस्वीर हटवा दी है और 
गांधीजी क़ी लगा दी है | इन ' चालाक ' लोगो क़ी अपनी क्षमता ,भीड़ जुटाने 
क़ी तो है नहीं तो उस बुजुर्ग से कहते हैं कि  ' अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे 
साथ है '|इस उम्र में 'अन्ना' का काम दिशा देने का हो सकता है ,पर सघर्ष   
करना इन नौजवानों का होना चाहिए |
 इस देश में भारतमाता की तस्वीर , को कला की आजादी के नाम पर एक नामी-गिरामी 
कलाकार विकृत रूप में पेश करता है ,जब तीव्र प्रतिक्रिया होती है ,इसको 
तरह तरह के नाम दिए जाते है ,तब देश छोड़ जाता है पर क्षमा नहीं मांगता |
(खैर , ईश्वर उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे ) 
इस समय तो एक ही प्रार्थना है कि हमारे 'अन्ना ' स्वस्थ रहें और इन एरियल बेचने 
वाले या नक्सालियों का समर्थन करने वालों से भी भगवान उन्हें बचाएं |
मुझे पूरा विश्वास है ,कि,देश को बाबा रामदेव का पथ प्रदर्शन , नया नेतृत्व भी खोज कर देगा |
देश कि जनता  ,सरहदों को मानने वालों और उसकी  रक्षा करने वालों को पूर्ण बहुमत दिलाये 
जिन्हें भारतमाता में ,सर्व धर्म समभाव ( छद्म धर्म निरपेक्षता नहीं )में विश्वास है ,जिनके 
पीछे moral force का डंडा हमेशा रहता है |जब पूर्ण बहुमत होगा तो गठ बंधन की मजबूरियां 
भी नहीं होंगी   |
कानून तो देश में अभी भी बहुत हैं पर उन्हें लागू करने का मनोबल नहीं है | फिर ,एक बार में १९७४ 
में श्री के .आर .गणेश वित्त राज्य मंत्री ,भारत सरकार का उदहारण देना चाहूँगा ,जिन्होंने 
हाजी मस्तान और यूसुफ़ पटेल ( बड़े तस्कर )को प्रचलित नियमों के तहत ही सींकचों के 
पीछे पहुँच दिया था | अभी इतना ही -शुभेच्छा के साथ -
 -महिपाल   

ANNA STIR

समूह के सभी सदस्यों को जान कर हर्ष होगा कि आप सुधिजनों कि प्रेरणा से एक बिलकुल 
ताज़ी रचना का जन्म हुआ है ,नाम करण के लिए आपको सोंप रहा हूँ |
        सत्ता से बेदखल कराना,
        कोई मुश्किल काम नहीं है ,
       किसे बिठाएं ,जो चल पाए ,
      सबसे मुश्किल काम यही है |
       
     नवजागरण ने दी थी  जो क्रांति ,
    तीन साल में मिट गयी भ्रान्ति ,(१९७७-१९८० )*
 इसमें से निकले कुछ नए जिन्न ,
  जिनकी मति थी फिर भिन्न भिन्न |

सुलगी फिर एक चिंगारी ,
लग गयी आग ,
 दांये बांये हो गए साथ ,
फिर सत्ता परिवर्तन का हुआ खेल ,
बेमेल ,मेल फिर हुआ फेल,
उपहार मिला , आतंकवाद ,
नस नस में फैला  जातिवाद (१९८९-१९९१ )

जब तक विकल्प न हो साफ साफ ,
भावों में हमें न बहना है ,
' अन्ना ' को पूरा आदर ,पर करें माफ़ ,
इससे ज्यादा न अभी कुछ कहना है ,
बस भावों में अभी न बहना है ,
न बहना है ,न बहना है 
 -महिपाल , ग्वालियर ,म .प्र .(०७५१ -२६६३८३६ ),अगस्त ,१९ ,२०११ 

 

Chintan Discussion

Dear Prof .Gupta,
                            I m highly impressed by ur analytical,factual nd categorical expression n the current debate. Although ,joining late ,however,i feel my filler is not out of context .

 I wish to add two points .One, about Kargil,the other about Mr.Nehru .
                    Kargil victory ,was not b'cauz of ' BOFORS ' GUN AT ALL 
rather the firm determination to get the hills freed from invaders 
at ANY COST (WHATEVER IT MAY BE )
                   MY fellow country men ,,in 1999 we were lacking
 army officer of the calibre of.Jagjeet Singh of 1965 War,who
managed the CANNON FODDER ,essential in such terrains by hanging lanterns in the neck of sheeps and pushing them to climb
the hills ,creating the impression of movement of a large army 
contingent under the fire cover .In short ,this forced the Pak contingent to flee . (The same soldier 
Lt.Gen.jagjit Singh ,who took charge on ground of ,the then East
Pakistan  in Dhaaka  in 1971 to fecilitate the surrender of 93000
thousands Pak soldiers  ),
    So the Same need  i.e.CANNON FODDER was fed , this time 
in 1999 ,through the sacrifice of very large number of soldiers
very large number almost unbelievable to achieve the ouster of 
a handful of Pak occupants from that difficult terrain 
  Those who r mesmerized by Mr.Nehru's  style of running the 
country ,may pl.note that -Defeat in war against China was b'cauz of ,Nehru's wrong  choice of putting his 
first cousin ,Lt.Gen.B.M.Kaul  G.O.C. eastern command ,
 in charge of operations in that area ,,who was almost a no soldier
but an officer only in too much of contrast as that of SAM  who succeded kaul during debacle and started holding firm to the ground .
        Even Kashmir  P     R   O   B   L    E      M, as it is  ,today,is the
U P H A R by Mr.Nehru to his fellow countrymen and generations to come .With regards to all and malice to none ,
- Mahipal