Friday 29 July 2011

jindgi badnam

                                                                जिंदगी   

जिंदगी बदनाम हुई जाती है ,
मेरी हर कोशिश नाकाम हुई जाती है |
लेकिन इन ध्रुव पंक्तियों से ,
यह न समझो की जिन्दगी से
 बहुत       मायूस हूँ मैं ,
 पर यह भी सच है  कि ,
जिंदगी से नहीं खुश हूँ मैं  |

दूध से धुली हुई    ,चाँदनी से उजली ,
बड़े जतन से संवारी,
प्यार से पाली हुई ,मेरी ये जिंदगी 
जिस पर मुझे नाज था ,
अभिमान था ,सिद्धांत -का आधार था ,
जो अडिग थे ,अटल थे   |
उन्हें डहाने क़ी कोशिश की ,
उन्हें बहाने क़ी कोशिश की ,
न वो ढहे ,  न वो बहे | 

तुम हुंकार सकते हो ,
 फुंकार सकते हो ,
चूंकि तुम ' बॉस  'हो मेरे ,
जो कि एक   भ्रम है ,
जब तक मुझे शरम है ,
बहुत कोशिश की मुझे पीसने क़ी,
 मगर , सचाई भी तो कोई चीज होती है |
बड़े बाबू न खुश हुए हों ,
मगर ,जनता तो मेरे दर्द देख रोती है |

उसकी आँख के आंसू बने सहारे हैं ,
जब जब भटका ,बने किनारे हैं |
उन किनारों पर बैठ कर मैंने साँस ली है ,
जिन्दगी धूमिल न हो ऐसी आस की है |
कुछ ,अपनी तो आदत है ,
व्यर्थ खुशामद से नफरत है |
फिर कैसे कह दूँ झूंठ बात को ,
रात को दिन ,और दिन रात को |

सत्य सिसकता रहा कैद में शैतान की ,
निकल रही है ,यहाँ लाश ईमान की |
देख इसी शोषण को , 
मेरा मन हो बैठा है बागी |
स्वाभिमान जागा है ,
पौरूषता  जागी |
बागी मन को समझाना नाकाम है ,
बागी तन को समझाना नाकाम है |

जिंदगी सरल,सुंदर ,पर बदनाम है ,
उसके माथे पर लगाया जो दाग है ,
हर क्षण ,सीने में सुलगाता वो आग है ,
आग बुझाने  की कोशिश नाकाम हुई जाती है ,
जिंदगी बदनाम हुई जाती है ,
मेरी   हर कोशिश नाकाम हुई जाती है ,
जिंदगी बदनाम हुई जाती है |





        

Sunday 24 July 2011

ek vichar

एक विचार -मार्क्सवादी के त्याग ,
और तपस्या का ड्राफ्ट ,
राजनैतिक बैंक में हो गया कैश |
राष्ट्रवादी की हुंडी का ,चेरिटी फंड से हुआ भुगतान  |
गांधीवादी    ,मुएजिअम(museum )मे,
 सज कर पा गए सम्मान |
और ,हम खुला छूटने के आरोप में ,
कान्जीहाऊस में किये गए कैद |
सूत्रधार --
एक वकुल ,
एक  गिरगिट |   

meraa prayaas

मेरा प्रयास है ब्लॉग में नया पोस्ट करने का 

Saturday 2 July 2011

praarambh

में कुछ पुरानी रचनाओं से इस ब्लॉग का प्रारम्भ कर रहा हूँ |
 महफ़िल -
दोस्तों की सजाई हुई महफ़िल ,
एक मयखाना ,
उनके छेडे हुए राग -एक शराब ,
कसम खाई न पीने की ,
पर शाम होते ही कदम उठ गए
और हम उसी मयखाने में जम गए |
फिर वही चख चख -
राजनीति ,धर्म ,सेक्स औ क्या नहीं ,
जहाँ  से चले रहे हम वहीँ के वहीँ |